शीत युद्ध (Cold War in Hindi) क्या है?- अर्थ, उत्पत्ति, कारण और कालक्रम

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ का उदय हुआ। इन दो महाशक्तियो के आपसी सम्बन्धों को अभिव्यक्त करने वाला अधिक उपयुक्त शब्द है – शीतयुद्ध (Cold War)

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

शीत युद्ध (Cold War in Hindi) क्या है – शीतयुद्ध दो विचारधाराओं, दो पद्धतियों, दो गुटों और दो राज्यों के मध्य उग्र संघर्ष था। दो विचारधाराएं थीं—  पूँजीवाद और साम्यवाद। दो पद्धतियाँ थीं— लोकतन्त्र और जनवादी गणतन्त्र। दो गुट थे— नाटो और वारसा पैक्ट। दो राज्य थे— संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ।

शीत (Cold) शब्द का उपयोग इसलिये किया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों (सयुक्त राष्ट्र अमेरिका और सोवियत संघ) के बीच प्रत्यक्ष रूप से कोई युद्ध नहीं हुआ था।

शीत युद्ध (Cold War) शब्द का पहली बार इस्तेमाल अंग्रेज़ी लेखक जॉर्ज ऑरवेल (George Orwell) ने सन् 1945 में प्रकाशित अपने एक लेख में किया था।Cold War in Hindi

शीतयुद्ध का अर्थ (meaning of cold war)

जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह अस्त्र-शस्त्रों का युद्ध न होकर धमकियों तक ही सीमित युद्ध है। इस युद्ध में कोई वास्तविक युद्ध नहीं लड़ा गया।

शीत युद्ध को वाक युद्ध के नाम से भी जाना जाता हैं। शीत युद्ध प्रत्यक्ष रूप से नहीं लड़ा गया था। शीत युद्ध (Cold War) कागज के गोलों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो तथा प्रचार साधनों तक ही लड़ा गया।

इस युद्ध में न तो कोई गोली चली और न कोई घायल हुआ। यह केवल कूटनीतिक उपायों द्वारा लड़ा जाने वाला युद्ध था जिसमें दोनों महाशक्तियां एक दूसरे को नीचा दिखाने के सभी उपायों का सहारा लेती रही।

शीतयुद्ध के लक्षण (Symptoms of Cold War)

शीतयुद्ध के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है

  • शीतयुद्ध दो सिद्धान्तों का नहीं अपितु दो महा शक्तियों – सोवियत संघ और सयुक्त राज्य अमेरिका का संघर्ष था।
  • यह वाक युद्ध था, इसमें प्रचार का महत्व था।
  • शीतयुद्ध में दोनों महाशक्तियाँ व्यापक प्रचार, सैनिक हस्तक्षेप का प्रयोग करती है।
  • सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य तनावपूर्ण सम्बन्धों की स्थिति को शीतयुद्ध कहा गया।

शीतयुद्ध का उद्भव/उत्पत्ति

शीतयुद्ध 20वीं सदी में दो महाशक्तियों (संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ) दो विचारधाराओं (पूँजीवाद, साम्यवाद), दो सैनिक संगठनों (नाटो तथा वारसा) के मध्य वैचारिक द्वन्द्व को व्यक्त करता है।

शीतयुद्ध के उद्भव/उत्पत्ति के समय को लेकर दो दृष्टिकोण हैं। प्रथम दृष्टिकोण आन्द्रे फोण्टेन और अमेरिकी विद्वान् हॉल का है कि शीतयुद्ध का उद्भव 1917 ई. में बोल्शेविक क्रान्ति के साथ हुआ। अपने पक्ष में यह विद्वान् अग्रलिखित तर्क देते हैंसो

  1. वियत संघ की साम्यवादी सरकार को ब्रिटेन एवं सयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मान्यता न देना।
  2. ब्रिटेन ने 1924 ई. में और अमेरिका ने 1933 ई. में सोवियत संघ को मान्यता दी और इसके साथ कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किए।
  3. द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ का एक गुट में सम्मिलित होना मजबूरी थी।

दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ दोनों एक ही गुट में सम्मिलित थे। ये विद्वान् शीतयुद्ध का उद्भव ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल द्वारा अमेरिका के फुल्टन नगर में 5 फरवरी, 1946 में दिए गए भाषण से मानते हैं। इस भाषण में चर्चिल ने कहा था कि- “हम एक फासीवादी शक्ति के स्थान पर दूसरी फासीवादी शक्ति को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं इसलिए साम्यवादी सोवियत संघ के विरुद्ध आंग्ल-अमेरिकी गठबन्धन की आवश्यकता है।“

शीतयुद्ध के कारण – Because of the cold war

शीतयुद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. ऐतिहासिक कारण

अधिकांश इतिहासकार शीतयुद्ध का कारण 1917 ई. की बोल्शेविक क्रान्ति में मानते हैं।

2. युद्धोत्तर उद्देश्यों में अन्तर

भविष्य में जर्मनी के विरुद्ध सुरक्षित रहने के लिए सोवियत संघ, यूरोप के देशों को सोवियत प्रभाव क्षेत्र में लाना चाहता था, तो पश्चिमी देशों के मत में जर्मनी की पराजय से सोवियत संघ के अत्यन्त शक्तिशाली हो जाने का भय था। वह देश सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव-क्षेत्र को सीमित रखने के लिए कटिबद्ध थे।

3. द्वितीय मोर्चे का प्रश्न

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब हिटलर ने सोवियत संघ को भारी जन-धन की क्षति पहुँचाई तो सोवियत नेता स्टालिन ने मित्र-राष्ट्रों से यूरोप में नाजी फौजों के विरुद्ध दूसरा मोर्चा खोल देने का अनुरोध किया ताकि नाजी सेना का रूसी सीमा पर पड़ा दबाव कम हो सके।

4. सोवियत संघ द्वारा बाल्कन समझौते का अतिक्रमण

सोवियत संघ ने अक्टूबर, 1944 में चर्चिल के पूर्वी यूरोप के विभाजन के सुझाव को स्वीकार कर लिया था। इसके अन्तर्गत यह निश्चित हुआ था कि सोवियत संघ का ‘बुल्गारिया ‘तथा ‘रूमानिया’ में प्रभाव स्वीकार किया जाए और यही स्थिति यूनान में ब्रिटेन की स्वीकार की जाए।

किन्तु युद्ध की समाप्ति के बाद हंगरी तथा यूगोस्लाविया में बाल्कन समझौते की उपेक्षा करते हुए सोवियत संघ ने साम्यवादी दलों को खुलकर सहायता दी और वहाँ ‘सर्वहारा की तानाशाही’ स्थापित करा दी गई।

5. ईरान से सोवियत सेना का न हटाया जाना

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सोवियत सेना ने ब्रिटेन की सहमति से उत्तरी ईरान पर अधिकार जमा लिया था। यद्यपि युद्ध की समाप्ति के बाद आंग्ल-अमेरिकी सेना तो दक्षिणी ईरान से हटा ली गई, पर सोवियत संघ ने अपनी सेना हटाने से इन्कार कर दिया। संयुक्त

6. यूनान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप

द्वितीय महायुद्ध में ब्रिटेन की स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी जिससे ब्रिटेन ने यूनान के अपने सैनिक अड्डे समाप्त करने की घोषणा कर दी।

यूनान के शक्ति-शून्य प्रदेश को भरने के लिए पड़ोसी साम्यवादी देशों द्वारा सोवियत संघ की प्रेरणा से यूनानी कम्युनिस्ट छापामारों को परम्परागत राजतन्त्री शासन उखाड़ फेंकने के लिए सहायता दी जाने लगी।

परिणामस्वरूप ट्रूमैन सिद्धान्त और मार्शल योजना के तत्वावधान में अमेरिका का हस्तक्षेप किया जाना अपरिहार्य हो गया अन्यथा यूनान का साम्यवादी खेमे में जाना निश्चित-सा ही हो गया था।

7. टर्की पर सोवियत संघ का दबाव

युद्ध के तुरन्त बाद सोवियत संघ ने टर्की पर कुछ भू-प्रदेश और वास्फोरस में नाविक अड्डा बनाने का अधिकार देने का दबाव डालना शुरू किया।

8. सोवियत संघ द्वारा अमेरिका विरोधी प्रचार

द्वितीय महायुद्ध समाप्त होने के कुछ समय पूर्व से ही प्रमुख सोवियत पत्रों में अमेरिका की नीतियों के विरुद्ध घोर आलोचनात्मक लेख प्रकाशित होने लगे। इस ‘प्रचार अभियान’ से अमेरिका के सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में बड़ा विक्षोभ फैला और अमेरिका ने अपने यहाँ बढ़ती हुई साम्यवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाना प्रारम्भ कर दिया ताकि अमेरिका में साम्यवाद के प्रभाव को बढ़ने से रोका जा सके।

9. बर्लिन की नाकेबन्दी

सोवियत संघ द्वारा लन्दन प्रोटोकॉल (जून, 1948) का उल्लंघन करते हुए बर्लिन की नाकेबन्दी कर दी गई। इससे पश्चिमी देशों ने सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की नाकेबन्दी के विरुद्ध शिकायत की और इस कार्यवाही को शान्ति के लिए घातक बताया।

10. सोवियत संघ द्वारा ‘वीटो’ का बार-बार प्रयोग

सोवियत संघ ने अपने ‘वीटो’ के अनियन्त्रित प्रयोगों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों में बाधाएँ डालना प्रारम्भ कर दिया, क्योंकि वह संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व- शन्ति और सुरक्षा स्थापित करने वाली एक विश्व संस्था न मानकर अमेरिका के विदेश विभाग का एक अंग समझता था।

अणु बम का बहिष्कार शीतयुद्ध के सूत्रपात का एक अन्य कारण अणु बम का आविष्कार था। यह कहा जाता है कि अणु बम ने हिरोशिमा का ही विध्वंस नहीं किया, अपितु युद्धकालीन मित्र राष्ट्रो की मित्रता का भी अन्त कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका में अणु बम पर अनुसन्धान कार्य और उसका परीक्षण बहुत पहले से चल रहा था।

11. अणु बम का बहिष्कार

शीतयुद्ध के सूत्रपात का एक अन्य कारण अणु बम का आविष्कार था। यह कहा जाता है कि अणु बम ने हिरोशिमा का ही विध्वंस नहीं किया, अपितु युद्धकालीन मित्र राष्ट्रों की मित्रता का भी अन्त कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका में अणु बम पर अनुसन्धान कार्य और उसका परीक्षण बहुत पहले से चल रहा था।

12. सोवियत संघ की लैण्ड-लीज सहायता बन्द किया जाना

लैण्ड-लीज एक्ट के अन्तर्गत अमेरिका द्वारा सोवियत संघ को जो आंशिक आर्थिक सहायता दी जा रही थी उससे वह असन्तुष्ट तो था ही क्योंकि यह सहायता अत्यन्त अल्प थी, किन्तु इस अल्प सहायता को भी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एकाएक बन्द कर दिया जिससे सोवियत संघ का नाराज होना स्वाभाविक था।

13. हित-संघर्ष

शीतयुद्ध वस्तुतः राष्ट्रीय हितों का संघर्ष था। द्वितीय महायुद्ध के उपरान्त अनेक मुद्दों पर सोवियत संघ और अमेरिका के स्वार्थ आपस में टकराते थे। ये विवादास्पद मुद्दे थे—जर्मनी का प्रश्न, बर्लिन का प्रश्न, पूर्वी यूरोप में साम्यवादी शासन की स्थापना करना आदि।

शीतयुद्ध का घटनाक्रम / कालक्रम – Cold War Events/Chronology)

शीतयुद्ध से सम्बन्धित घटनाक्रम निम्नलिखित हैं

ट्रूमैन सिद्धान्त (1947): शीतयुद्ध के समय सोवियत संघ के विस्तार को रोकने की अमेरिकी नीति को ट्रूमैन सिद्वान्त (Truman Doctrine) कहा गया। इसे रोकथाम की नीति भी कहाँ जाता है। साम्यवाद के यूरोप में प्रसार को रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने तुर्की यूनान को आर्थिक सहायता दी।

बर्लिन नाकेबन्दी (1948-49): सोवियत संघ के द्वारा पश्चिमी बर्लिन की नाकेबन्दी की गई। जिससे शीत युद्ध का माहोल उत्पन्न हुआ।

मार्शल प्लान (1947-52): पश्चिमी यूरोप में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए अमेरिकी विदेश सचिव मार्शल के सुझाव से छः यूरोपीय देशों को अमेरिका द्वारा आर्थिक सहायता दी गई।

नाटो की स्थापना: साम्यवाद के प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिकी नेतृत्व में गठित सैनिक संगठन। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization, NATO; नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन, नाटो ) एक सैन्य गठबंधन है।

  • स्थापना: 4 अप्रैल 1949
  • मुख्यालय: ब्रुसेल्स (बेल्जियम)
  • सदस्य देश: 29

कोरिया संकट: उत्तर कोरिया साम्यवादी द्वारा दक्षिण कोरिया पर आक्रमण हुआ, जिसे कोरिया संकट के नाम से जाना जाता है। इस संकट का अन्त एक समझौते द्वारा हुआ है। कोरियाई युद्ध (1950-53) का प्रारंभ 25 जून, 1950 को उत्तरी कोरिया से दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण के साथ हुआ।

यह शीत युद्ध काल में लड़ा गया सबसे पहला और सबसे बड़ा संघर्ष था। एक तरफ़ उत्तर कोरिया था जिसका समर्थन कम्युनिस्ट सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन कर रहे थे, दूसरी तरफ़ दक्षिणी कोरिया था जिसकी रक्षा अमेरिका कर रहा था। युद्ध अन्त में बिना निर्णय ही समाप्त हुआ परन्तु जन क्षति तथा तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था।

सीटो (1954): साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन, पूर्वी एशिया में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए अमेरिका द्वारा बनाया सैनिक संगठन है।

वारसा पैक्ट (1955): सोवियत संघ के गुट का सैनिक संगठन वर्ष 1991 में समाप्त हुआ।

बगदाद समझौता (सेण्टो) (1955): पश्चिमी एशिया में साम्यवाद रोकने के लिए बगदाद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, इसे ‘CENTO’ के नाम से जाना जाता है।

हंगरी में हस्तक्षेप (1956): हंगरी में सोवियत संघ द्वारा हस्तक्षेप किया गया जिसकी आलोचना अमेरिकी गुट द्वारा की गई। इससे तनाव में वृद्धि हुई।

स्वेज संकट (1956): मिस्र द्वारा स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण करने पर ब्रिटेन, फ्रांस तथा इजरायल द्वारा मित्र पर आक्रमण किया गया। UNO महासभा की निन्दा के बाद ही आक्रामक देशों की सेनाएँ वापिस हटी।

आइजन हॉवर सिद्धान्त (1957): इसका मुख्य उद्देश्य है मध्यपूर्व साम्यवाद के अवरोध को रोकना और ब्रिटेन की शक्ति सूचना को पूरा करना।

कैम्प डेविड भावना (1959): वर्ष 1959 में सोवियत प्रधानमन्त्री खुश्चेव अमेरिकी यात्रा की जिससे दोनों महाशक्तियों में सौहार्द और प्रेम का वातावरण बना, जिसे कैम्प डेविड भावना का नाम दिया गया।

यू-2 विमानकाण्ड (1960): अमेरिका का यू-2 जासूसी विमान, सोवियत संघ में 1 मई, 1960 को जासूसी करता पकड़ा गया जिसके परिणामस्वरूप पेरिस सम्मेलन असफल हुआ और शीतयुद्ध में वृद्धि हुई ।

पेरिस सम्मेलन (1960): इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था वार्ता द्वारा महाशक्तियों के तनाव में कमी लाना, परन्तु यू-2 काण्ड के कारण असफल हुआ।

जर्मनी विभाजन: द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजी जर्मनी की पराजय के फलस्वरूप जर्मनी को दो भागों में बांट दिया गया और इन्हें ‘पूर्वी जर्मनी’ तथा ‘पश्चिमी जर्मनी’ कहा गया। इसी को ‘जर्मनी का विभाजन’ कहा जाता है। (वर्ष 1961) में बर्लिन दीवार पश्चिमी एवं पूर्वी जर्मनी को विभाजित करने के लिए खड़ी की गई है।

क्यूबा का मिसाइल संकट (1962): वर्ष 1958 में फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में क्यूबा में साम्यवादी शासन की स्थापना व क्यूबा में सोवियत संघ की सहायता से सैनिक अड्डा व स्थापित मिसाइलों का अमेरिका ने विरोध किया और सोवियत संघ से मिसाइल हटाने या युद्ध करने की बात की। यह संकट अन्ततः खुश्चेव के मिसाइल हटाने की घोषणा के साथ समाप्त हुआ।

वियतनाम संकट (1960-79): उत्तरी वियतनाम द्वारा दक्षिण वियतनाम पर वियतकांग संगठन के माध्यम से नियन्त्रण का प्रयास तथा अमेरिका द्वारा दक्षिण वियतनाम को सैनिक सहायता के कारण उपजा । इसका अन्त वर्ष 1975. में वियतनाम के एकीकरण के साथ हुआ।

डोमिनो सिद्धान्त (1960-73): दक्षिण वियतनाम में साम्यवादी प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका द्वारा दक्षिण वियतनाम को दी गई सैनिक व आर्थिक सहायता।

अफगानिस्तान हस्तक्षेप: दिसम्बर, 1979 में सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में हस्तक्षेप कर वहाँ की अमीन सरकार अपदस्थ कर नई सरकार की स्थापना की गई। इससे महाशक्तियों के तनाव में वृद्धि हुई और नव-शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।

सीमित परमाणु परीक्षण सन्धि (1963): वायुमण्डल, बाहरी अन्तरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगाने वाली इस सन्धि पर अमेरिका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मॉस्को में वर्ष 1963 में हस्ताक्षर किए। यह सन्धि अक्टूबर, 1963 में प्रभावी हो गई।

परमाणु अप्रसार संघ (1968): वर्ष 1968 में परमाणु प्रौद्योगिकी पर नियन्त्रण के लिए की गई सन्धि। यह सन्धि वर्ष 1970 से प्रभावी हुई। इस सन्धि को वर्ष 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया।

सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता साल्ट-I (1972) इसके अन्तर्गत मई 1972 में दो समझौते हुए

  •  परमाणु मिसाइल परिसीमन सन्धि (ABM ट्रीटी)
  • सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन के बारे में USSR, & USA में अन्तरिक्ष समझौता अक्टूबर, 1972 से प्रभावी हुई।

सामारिक अस्त्र परिसीमन वार्ता साल्ट-II (1972) सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन से सम्बन्धित सन्धि पर हस्ताक्षर किए (जून, 1972 में समझौता सम्पन्न)

सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि स्टार्ट-1 (1991):  (स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन सन्धि START-I) USSR और USA के मध्य सामरिक से घातक हथियारों के परिसीमन और उनकी संख्या में कमी लाने से सम्बन्धित सन्धि पर 31 जुलाई, 1991 में हस्ताक्षर किए।

सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण सन्धि स्टार्ट-II (1993) वर्ष 1993 में परमाणु हथियारों में कमी लाने के लिए रूस व अमेरिका के मध्य की गई सन्धि।

वर्ष 1985 में गोर्बाच्योव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने; सुधार की प्रक्रिया (ग्लासनोस्त व पेरेस्त्रोइका) आरम्भ की।

बर्लिन की दीवार ढहना (1989): वर्ष 1961 में बनी बर्लिन दीवार, 9 नवम्बर, 1989 को ढहा दी गई। यह शीतयुद्ध के अन्त व सोवियत संघ के अवसान का प्रतीक था।

जर्मनी का एकीकरण (1990): बर्लिन की दीवार ढहने के बाद, मार्च, 1990 में जर्मनी में चुनाव हुए और 3 अक्टूबर, 1990 को चांसलर हेल्मुटकोल के नेतृत्व में एकीकृत जर्मनी की नई सरकार बनी।

नव-शीतयुद्ध क्या है?

  • नव-शीतयुद्ध विचारधारा से परे था क्योंकि नव-शीतयुद्ध में साम्यवादी चीन अमेरिकी गुट में शामिल था।
  • नव-शीतयुद्ध की एक प्रमुख विशेषता थी स्टारवार्स। अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने सोवियत संघ पर नियन्त्रण के लिए स्टारवार्स अर्थात् अन्तरिक्ष में मिसाइलें, उपग्रह, जासूसी विमानों की शुरुआत की। जवाबी कार्यवाही में सोवियत संघ ने भी स्टारवार्स कार्यक्रम की शुरुआत की।
  • शीतयुद्ध का क्षेत्र विकासशील देश थाः जैसे-अफगानिस्तान, हिन्द महासागर।

शीतयुद्ध की समाप्ति

माल्टा शिखर सम्मेलन में, गोर्बाचेव और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश ने दिसंबर, 1989 को शीत युद्ध की समाप्ति की घोषणा की थी।
वर्ष 1991 में सोवियत संघ का बटवारा 15 जनराज्यो के रूप में हुआ जिसके फलस्वरूप शीतयुद्ध की समाप्ति हुई।

तीन घटनाओं ने शीत युद्ध की समाप्ति की शुरुआत की जो निम्ननिखित हैं

  1. 1989 में बर्लिन की दीवार का गिरना,
  2. 3 अक्टूबर, 1990 में जर्मनी का एकीकरण और
  3. 1991 में सोवियत संघ का विघटन
  4. वार्सा संधि का अंत।

शीतयुद्ध का अन्त कैसे हुआ?

शीतयुद्ध के अन्त या सोवियत संघ के विघटन के कारण निम्नलिखित हैं

  1. शीतयुद्ध के अन्त का एक प्रमुख कारण नव शीतयुद्ध का स्टारवार्स कार्यक्रम था। स्टारवार्स कार्यक्रम की घोषणा करने वाला अमरीका राष्ट्रपति रिगन था। स्टारवार्स कार्यक्रम के तहत सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी, और वह अपने मूल लक्ष्य ‘समाजवाद’ से भटक गया था।
  2. सोवियत संघ में उत्पन्न आर्थिक व खाद्यान्न संकट ने भी शीतयुद्ध के अन्त को अंजाम दिया।
  3. गोर्बाच्योव की ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका नीति ने भी सोवियत संघ के विघटन का मार्ग प्रशस्त किया। ग्लासनोस्त का अर्थ है खुलापन अर्थात् ‘स्वतन्त्रता’। इसके कारण सोवियत संघ की जनता ने सरकार से नवीन नकारात्मक अधिकारों की माँग की। पेरेस्त्रोइका नीति के कारण औद्योगिक क्षेत्र में निजीकरण को अपनाया गया।
  4. सोवियत संघ में आर्थिक संकट के कारण विभिन्न नृजातीय संघर्ष उत्पन्न हुए, इन नृजातीय संघर्षों ने भी शीतयुद्ध के अन्त का मार्ग प्रशस्त किया।
  5. चीन – सोवियत संघ मतभेद ने भी सोवियत संघ के विघटन में योगदान दिया।
  6. सोवियत संघ में सशक्त नेतृत्व के अभाव ने भी सोवियत संघ के विघटन को जन्म देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस प्रकार सोवियत संघ के विघटन में अनेक कारणों ने योगदान दिया।

शस्त्रीकरण की होड़ एवं शीतयुद्ध

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपजे शीतयुद्ध ने जो दो महाशक्तियों (USA, USSR) दो विचारधाराओं (पूँजीवाद और साम्यवाद ) व दो सैनिक संगठन (नाटो तथा वारसा) के मध्य वैचारिक द्वन्द्व था, शस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया।

द्वितीय विश्वयुद्ध काल में अमेरिका द्वारा सोवियत संघ से परमाणु बम की जानकारी छिपाना तथा जापान के हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बमों की बौछार ने जहाँ एक ओर शीतयुद्ध को जन्म दिया वहीं विश्व में शस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया।

इसके बाद वर्ष 1949 में सोवियत संघ ने भी परमाणु परीक्षण कर परमाणु अस्त्र निर्माण क्षमता हासिल कर ली। इसके बाद अमेरिका ने अपने सहयोगियों की रक्षा के लिए नाटो का वर्ष 1949 में निर्माण, तो वहीं सोवियत संघ ने वर्ष 1955 में वारसा सैनिक संगठन का निर्माण किया।

इसके बाद दोनों महाशक्तियों ने अपने प्रभाव को बढ़ाने को लिए अनेक लम्बी दूरी की मिसाइलों का निर्माण किया और विश्व के अनेक स्थानों पर सैनिक अड्डों की स्थापना की।

अमेरिका की कमान तो पूरे विश्व को नियन्त्रित करती थी। अमेरिका ने अगर तुर्की में सैनिक अड्डा बनाया तो सोवियत संघ ने क्यूबा में अमेरिका ने डिएगो गार्सिया (हिन्द महासागर) को नौसैनिक अड्डे के रूप में विकसित किया तो सोवियत संघ ने भी अपना एक पोत बेड़ा हिन्द महासागर में भेजा।

वर्ष 1979 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान में हस्तक्षेप तथा रीगन का अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के साथ स्टारवार्स महाशक्तियों के मध्य आरम्भ हो गया। फ्रांस, इंग्लैण्ड, चीन आदि राष्ट्रों ने भी इस काल में परमाणु परीक्षण शस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया।

इस प्रकार शीतयुद्ध ने शस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया, जिसके फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में वृद्धि हुई और कल्याणकारी कार्यों में बाधा पहुँची। इस शस्त्रीकरण की होड़ से उत्पन्न भय ने निरस्त्रीकरण का मार्ग प्रशस्त भी किया जिसके फलस्वरूप अनेक निरस्त्रीकरण सम्बन्धी प्रयास हुए जैसे सीमित परमाणु सन्धि (1963), परमाणु अप्रसार सन्धि (1968), एण्टी बैलेस्टिक मिसाइल सन्धि (1972), साल्ट-1 तथा साल्ट-II, स्टार्ट-1 तथा स्टार्ट II आदि।

शीतयुद्ध काल में उपजी शस्त्रीकरण की होड़ का शीतयुद्ध के समाप्त होने के बाद भी अन्त नहीं हुआ। शीतयुद्ध के बाद अमेरिका ने पैट्रियाटिक मिसाइल, राष्ट्रीय प्रतिरक्षा प्रणाली (NMD) का विकास किया तो सोवियत संघ के उत्तराधिकारी रूस ने निर्वात बम जैसे आधुनिक बम का निर्माण किया। क्षेत्रीय स्तर पर शस्त्रीकरण की होड़ और भी बढ़ गई, जापान जैसे युद्ध विरोधी राष्ट्रों ने भी आज रक्षा मन्त्रालय का गठन कर लिया है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top